सुन मेरे हमसफर 21

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     निशी के सवाल ने अव्यांश को बहुत बुरी तरह से चौंका दिया था। वह ना जाने कब से निशी के कुछ कहने का इंतजार कर रहा था लेकिन उसने कहा भी तो क्या! उसके पहले शब्द, उसका पहला सवाल! उन दोनों की शादी हो गई और अब तक उसे यह भी नहीं पता उसकी शादी किससे हुई है?


    अव्यांश अपनी हालत पर हंस दिया और पूछा "तुम मजाक कर रही हो ना!"


    निशी गंभीर होकर बोली "नहीं! मैं इस वक्त कोई मजाक नहीं कर रही। कौन हो तुम और तुमने मुझसे शादी क्यों की?"


    अव्यांश ने एक बार फिर पूछा "क्या तुम्हारे पापा ने तुम्हें कुछ नहीं बताया?"


    निशी ने अजीब तरह से गर्दन हिलाया और बोली "मुझे नहीं पता। मुझे सिर्फ इतना पता है कि मेरी शादी मेरे पापा के बॉस के बेटे के साथ हुई है। लेकिन ये घर कौन सा है, तुम कौन हो? और तुमने मुझसे शादी क्यों की, मुझे जानना है। तुमने मुझे मेरे बारे में बताया कि मैं बहुत बोलती हूं, लेकिन तुम्हें कैसे पता?"


     अव्यांश छत की तरफ देखा और एक गहरी सांस ली फिर बड़ी हिम्मत जुटाकर निशी के सामने आकर खड़ा हो गया और बोला "तुम्हारे पापा ने कभी तुम्हारे सामने मेरा जिक्र नहीं किया? आई मीन, तुम्हारे पापा ने तुम्हें अव्यांश के बारे में बताया जो उनके अंडर काम करता था?"

 

      निशी ने सवालिया नजरों से अव्यांश को देखा और हां में गर्दन हिला दिया। "अव्यांश गुप्ता! पापा ने बताया था मुझे लेकिन तुम क्यों पूछ रहे हो?"


     अव्यांश बोला "वह मैं ही हूं। लेकिन अव्यांश गुप्ता नहीं अव्यांश मित्तल। यह मेरी असली पहचान है और तुम्हारे पापा को भी मेरे असली पहचान के बारे में कुछ नहीं पता था।"


     अव्यांश ने टिशू पेपर लिया और निशि का हाथ साफ कर बोला "अब तुम थोड़ी देर सो जाओ। शाम को कुहू दी की सगाई है।" अव्यांश ने बेड पर से एक तकिया उठाया और सोफे पर जाकर लेट गया।


     निशी अभी भी कुछ समझ नहीं पा रही थी। जिस अव्यांश से मिलने के लिए वो इतनी ज्यादा एक्साइटेड थी, लेकिन मिल नहीं पाई थी, आज एकदम से उसे पता चला कि वह उसी इंसान की पत्नी बन चुकी है। उसने पूरे कमरे को ध्यान से देखा। एक कमरा उसके आधे घर के बराबर था। निशी मन ही मन बोली "यह अमीर लोग और इनकी बड़ी बातें!"


    निशी को सोचता देख अव्यांश ने आंखें बंद किए ही कहा "सो जाओ। अगर नींद नहीं आ रही तो भी कुछ देर आराम कर लो वरना तबीयत बिगड़ जाएगी तुम्हारी।"


    निशी चुपचाप जाकर बिस्तर पर लेट गई। थकान की वजह से उसे जल्दी ही नींद आ गई लेकिन अव्यांश के मन में जो कुछ चल रहा था उसकी वजह से सो नहीं पाया। जब उसने देखा, निशी ऐसे ही सो गई है तो वह धीरे से उठा और दबे पांव जाकर निशी के ऊपर कंबल डाल दिया। फिर वापस सोफे पर आकर इस तरह लेटा जिससे उसे निशि का चेहरा साफ नजर आ रहा था। उस मासूम से चेहरे में ना जाने ऐसा क्या था जिसके कारण अव्यांश चाह कर भी खुद को उसकी तरफ खींचे जाने से नहीं रोक पा रहा था। 


     "वो पहली मुलाकात! क्या निशी को याद होगा?" अव्यांश मन ही मन उन दोनों के पहली मुलाकात याद करता हुआ सो गया।


*****



     सारे जरूरी काम निपटाने के बाद अवनी अपने कमरे में गई तो सारांश ने पीछे से उसे पकड़ लिया और ले जाकर बिस्तर पर सुला दिया। "सारांश! ये आप क्या कर रहे हैं? छोड़िए मुझे।"


    लेकिन सारांश कहां उसकी सुनने वाला था। उसने अवनी का सर सहलाते हुए कहा "कुछ देर आराम कर लो, जरूरी है तुम्हारे लिए। तुम्हें भले ही थकान नहीं हो रही हो लेकिन मुझे हो रही है और मैं नहीं चाहता इस थकान की वजह से मेरी बीवी की आंखों के नीचे काले गड्ढे पड़ जाए।"


     "सारांश......!" अवनी बच्चों की तरह कुनमुनाती हुई बोली तो सारांश उसकी बालों में उंगलियां घुमाते हुए बोला "थोड़ी देर बस। उसके बाद सारी थकान दूर हो जाएगी। सारे काम आराम से हो जाएंगे। हमें कुछ नहीं करना है। कार्तिक से तो तुम्हारी बात हो ही गई होगी। जब सारे अरेंजमेंट लड़के वाले देख रहे हैं तो हमें टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। खासकर तुम्हें।"


     सारांश ने जिस तरह अवनी के बालों को सहलाया अपनी गहरी नींद में सो गई। उसके सोने के बाद सारांश उठा और ऑफिस के लिए तैयार होकर बाहर निकल गया। सिद्धार्थ और समर्थ पहले ही ऑफिस जा चुके थे। कुछ जरूरी काम सारांश को भी निपटाने थे। शाम से पहले उन्हें खत्म करना था इसलिए सारांश ऑफिस के लिए निकल गया। पूरे घर में खामोशी पसरी हुई थी और बाहर डेकोरेशन का काम चल रहा था।




     शाम के वक्त काव्या अपने साथ कई सारे बैग्स उठा ले आई जिसमें उसकी 3 असिस्टेंट में भी उसके साथ लगी हुई थी। उसने सारा सामान हॉल में रखवाया और सिया के कमरे में चली गई। "बड़ी मां! मैं ले आई जो कुछ भी आपने कहा था।"


     सिया पौधों को पानी दे रही थी जब उन्होंने काव्या की आवाज सुनी। वो सब छोड़कर काव्या के साथ बाहर निकली। काव्या ने सारे बैग की तरफ दिखाते हुए कहा "बड़ी मां! इसमें सबके लिए कपड़े है।"


    सिया ने घर के नौकरों को आवाज लगाई और सारे कपड़े एक एक कर सब के रूम में पहुंचाने को कह दिया। निशी और अव्यांश का बैग लेकर सिया बोली "उन दोनों के कपड़े मैं खुद देकर आती हूं।" 


    श्यामा बाहर आई और बोली "मां! आप कुछ नहीं करेंगे। आप आराम से बैठे या जाकर तैयार हो लीजिए। उन दोनों के कपड़े मैं खुद देकर आती हूं। आपको सीढ़ियां उतरने चढ़ने की कोई जरूरत नहीं है।"


     सिया ने इसका विरोध करना चाहा तो श्यामा बोली "अगर आपने जिद की तो मैं सारांश और सिद्धार्थ को बता दूंगी।" सिया का चेहरा उतर गया और वह नाराज होकर अपने कमरे में चली गई। उनकी यह हरकत देख श्यामा और काव्या हंसने लगे। काव्या बोली "सुना था, इंसान की जैसे जैसे उम्र ढलती है वैसे वैसे वह बच्चा बनता जाता है। बड़ी मां को देखकर इस बात पर यकीन हो गया।"


    श्यामा ने दो बैग उठाए और अव्यांश के कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी। अव्यांश की आंख खुली और वो जल्दी से उठ खड़ा हुआ। दरवाजे पर फिर दस्तक हुई, तब जाकर पूरी तरह नींद से बाहर निकला और जाकर दरवाजा खोल दिया। सामने अपनी बड़ी मां को देख कर अव्यांश मुस्कुराते हुए बोला "गुड इवनिंग बड़ी मां!"


     श्यामा ने उसके सर पर हाथ फेरा और बाल बिगड़ती हुई बोली "गुड इवनिंग बच्चे! यह तुम्हारे और निशी के लिए है, सगाई में पहनने के लिए।"


     श्यामा ने एक नजर बेड पर सो रही निशी की तरफ देखा तो मुस्कुरा दी। लेकिन जैसे ही उसकी नजर सोफे पर रखें तकिए पर गई, उसकी मुस्कान थोड़ी फीकी हो गई लेकिन फिर कुछ सोच कर उसकी मुस्कान वापस पहले जैसी हो गई। 


    अव्यांश बोला "क्या बड़ी मां! मुझे बुला लिया होता, मैं खुद चला आता। आपको परेशान होने की जरूरत नहीं थी।"


     श्यामा ने नीचे की तरफ देखा और बोली "अगर मैं नहीं आती तो इस वक्त दरवाजे पर तुम्हारी दादी खड़ी होती। तुम दोनों जल्दी से तैयार हो जाना। तुम्हारे पापा और बड़े पापा ऑफिस से आते ही होंगे।"


      श्यामा वहां से जाने को हुई तो अव्यांश ने रोकते हुए पूछा "बड़ी मां! शिवि दी कहां है?"


     श्यामा कुछ सोचते हुए बोली "उसको आने में अभी थोड़ा टाइम लगेगा। 2 दिन पहले ही वो सेमिनार के लिए निकली है। चित्रा और निक्षय को कल यहां से निकलना है, इसलिए उसके रहते हम कुहू की सगाई कर रहे हैं, वरना इतनी जल्दबाजी में हमारा कोई इरादा नहीं था।"


     सिद्धार्थ ने श्यामा को आवाज लगाई, "श्यामा.....!"


    श्यामा ने सुना तो अव्यांश से बोली, "मैं चलती हूं। तुम निशी को उठा दो और दोनो तैयार हो जाओ।" और वो वहां से चली गई।


    अव्यांश कमरे में आया और निशी के पास जाकर खड़ा हो गया। लेकिन अब उसे जगाए कैसे, ये उसे समझ नहीं आ रहा था।



*****



    कुहू, काया और सुहानी इस वक्त पार्लर में बैठी थी। सुहानी और काया तो तैयार हो चुकी थी लेकिन कुहू को अभी टाइम लगना था। सुहानी ने अपना फोन लिया और शिवि को कॉल आकर दिया। थोड़ी देर में ही शिवि ने कॉल रिसीव कर लिया।


     शिवि बोली, "बहुत प्यारी लग रही हो तुम दोनो। देखना, कहीं कोई तुम दोनो को पसंद ना कर ले! ऐसे शादी पार्टी में ही ऐसे रिश्ते बनते है।"


     काया हंसते हुए बोली, "रिश्ते की बात का तो पता नही लेकिन आज हम दूसरों पर कहर बन कर टूटेंगी। बस एक आपकी कमी है। लेकिन सही है। आप के रहते हमे कोई देखता ही नही है।"


    शिवि कुछ बोलती उससे पहले ही कुहू ने फोन लिया और बोली, "ये बात तो बिल्कुल सही कही कायू ने।"


     शिवि को कभी अपने रंग को लेकर कोई प्रॉब्लम नहीं हुई लेकिन ये दुनिया गोरे रंग पर मरती है इसीलिए ये बात उसके मन के अंदर किसी कोने में कहीं दबी हुई थी। उसने कहा, "क्या दी आप भी! और कोई नहीं मिला जो आप मेरे पीछे पड़ी हो?"


     कुहू इमोशनल होकर बोली "तुम्हारी याद आ रही है शिवि! तुम्हें आज यहां होना चाहिए था।" 


    शिवि भी थोड़ी इमोशनल हो गई। लेकिन उसने कुहू का मूड ठीक करते हुए कहा "हां दी! मैं बहुत मिस कर रही हूं आप सबको। और आज के दिन को भी बहुत मिस करूंगी। लेकिन कोई बात नहीं, बहुत जल्द मैं आप सब से मिलूंगी और आपके उनसे भी। वैसे नाम क्या है आपके होने वाले का?"


     कुहू के कुछ कहने से पहले ही सुहानी ने उसके हाथ से फोन छीन लिया और बोली "अरे दिदू! अपने होने वाले का नाम अपनी जुबान से नहीं लेते। नजर लग जाती है। वैसे शिवि दी! कुणाल नाम है उनका। कुणाल राजवंश।"


    शिवि ये नाम सुनकर थोड़ा सोच में पड़ गई।




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